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________________ बाबाबा-बावाबा बाबाबा एजी बाबाबा तोरे सांसनको छिब भारो० ॥४॥राग० पांचमी० बटवा गूदण देरे मौनानौडा. एदेशी० नइया पार लंघादे मोरे पुजजी न या पार लंघां० ॥ हारे मोरे प्यारे सुखकार प्रभुजी मोरी नइया पार लंघा ॥ एमां. जोरावर तोरे दर्शको प्यासो॥. हर्षर गुण गाय ॥ नित उठ . तोरा नपन करत है। तन मनथी लिवलाय ॥ मोरे प्यारे. नद्याः • ॥५॥ इति। अथ ढाल ११. एका दशमी० राग. प्रभातीः वा कालौंगडो ॥ प्रात, उठी श्रीडाल गणिंदको भजन करी भवि भाव धरी। संकट कोट कटे भव संचित ज्यो ध्यावै मन उमंग करौ॥ पा. एमां. सहर उन्जेणी देव मालवो ॥ पोश बंश अवतार धरौ। मात बड़ावा तात कनौलाल ॥ तास घरे
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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