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________________ ( २६ ) लंघादे ॥ ० ॥ राग• तौसरी चलती चंपला चंचल चाल० एदेशी• मुज लागत प्यारो भारी डाल गर्णिदवि तोरी || सिडान्त बचन भल्ल बोलै ॥ बयनन अमृत रस घोलै ० ० । च भविमन बहु हर्ष भयोरौ ॥ मु० एषां ॥ जलदी तारो मुन भयौ करदे नइर्या धार ॥ सरण ग्रहको बांहकों मकर करो भवं पार | आहाहा बंइयां मोरो ॥ ओहोहो आप गहोरी ॥ भव बार सेतो पार करोरी ॥ सुज० ॥ ३ ॥ राग चौधौ तोरी छल बल है न्यारी तोरी कलबल है प्यारी ॥ एदेसी• तोरे सांसनको विबभारी ॥ जैसे खिलरही केसर क्यारौ ॥ थांरा संत सतौ गुलभारी मोरे खाम० एषां० ॥ च्यार तोर्घनित. करता दर्शन ॥ दर्शन कर होता परसन मोरे स्वाम ॥ नित जपता है जाम || तोरौ धरता है छाप ॥ ज्यारा कटता है माप ॥ एत्रो "
SR No.010338
Book TitleJain Bhajan Prakash 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJoravarmal Vayad
PublisherJoravarmal Vayad
Publication Year
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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