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खुनायजी । यश० ॥ ७॥ ॥ इति । __अथ ढाल ७ सातमी० राग० विहाग. चंदा प्रभु भेटत भव दुःख जावै । एदेशौ०
प्रभु तोरा च्चार तीर्थ गुण गावै। थारे सुख सावा नित चावै ॥ प्र० एम० ॥ श्री भिक्षु के सप्तम पाटे। डाल जनेंद्रसा सुहावै ॥ कहां लग कर पोपमा बरणन। सुर गुरु पार न पावै ॥ प. ॥१॥ दोय वर्ष घया सरौरकारण पिण। दिन २ अधिक लखावै ॥ निरवल पणो फुन सोफ इत्यादिक । अन्नको रुच नहीं थावै ॥ पृ०॥२ ॥ कारण करि वेदन बहु तोपिण। स्वकर कार्य करावै ॥ सूरवीर साहासीक पणोप्रभु। खातर मैं नहीं ल्यावै ॥ प्र० ॥३॥ सन्त कुमार चक्रोधया चौथा । सुत्रा मांहे बतावै ।। जेहनी परे प्रभु वेद न खमरह्या । साहसही दरसावै ॥ ५० ॥ ४ ॥ गज सुख माल कुमार