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जैनबालबोधकगये और राज्याभिषेक किया सब क्षत्रिय राजाओंने भगवानको अपना स्वामी माना।
भगवानने भी अपने पिताके समान ही 'हा' 'मा' 'धिक्' इन शब्दोंके वोलनेको ही दंड विधान रक्खा था क्योंकि उस समय की प्रजा वडी सरल शांत और भोली थी इस कारण इतने ही दंडको बहुत कुछ समझती थी।
फिर भगवान्ने एक एक हजार राजाओंके ऊपर चार महा मंडलेश्वर राजाओंकी स्थापना की। इनके नाम-हरि, अकंपन, काश्यप और सोमप्रभ थे । इन चारों ही राजाओंने चार चार वंशोंकी स्थापना की। हरिने हरिवंश, अकंपनने नाथवंश, काश्यप ने उग्रवंश और सोमप्रभने कुरुवंश चलाया । वे उक्त चारों ही वंशोंके नायक हुये । तथा अपने १०१ पुत्रोंको भी पृथिवी तथा अन्यान्य संपत्ति वांटी।
सबसे पहिले भगवान्ने इक्षुके (सांटेके) रसको संग्रह करनेका उपदेश दिया था इससे भगवान् इक्ष्वाकु कहाये और इसी कारण आपके वंशका नाम इक्ष्वाकुवंश प्रसिद्ध हुआ। और कच्छ महाकच्छ आदि नरेशोंको अधिराज पद दिया। और अपना समय सदा परोपकारमें ही लगाया और लोगोंकी इच्छानुसार दान दिया। .
एक दिन भगवान्के सन्मुख इन्द्रने मनो विनोदकेलिये गंधर्व देव तथा नीलांजना आदि देवांगनाओंका नाच करवाया उस समय नीलांजनाकी नाचते नाचते ही प्रायु पूर्ण हो गई, इन्द्रने तत्काल ही उसकी जगह दूसरी अप्सरा नाचनेको खडी कर दी