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चतुर्य भाग।
३६ (युवराजको ) राजा कहना । तथा भूतकालमें डिपुटी साहब थे उनका श्रीधा चले जानेपर भी डिपुटी साहव कहना।
५। वर्तमान पर्याय युक्त वस्तुको उसी रूप कहना सो भाव निक्षेप है । जैसे, राज्य करते पुरुषको राजा कहना।
१४. आहिंसाका उपदेश ।
घनाक्षरी छंद । सुकृतकी खान इन्द्रपुरीकी नसनी ज्ञान,
पापरजखंडनको पौनिरासि पेखिये। । भवदुख गवक वुझाइवेको मेघमाला,
कमला मिलायवेको दूतीज्यों विशेखिये। सुगतिबधूसों प्रीति, पालवेको पालीसम,
कुगतिके द्वारदृढ़ पागलगी देखिये। ऐसी दया कीजे चित, तिहलोक प्राणी हित.
और करतूत काहू, लेखैमै न लखिये ॥१॥ अर्थ- जो दया पुण्य कार्योंकी खानि है, स्वर्गपुरी जानेके लिये नलैनीकी समान है, पापरूपी धूल उड़ानेके लिये आंधी है,
संसारके दुखरूपी अग्निको वुझानेके लिये मेघमाला है, लक्ष्मीसे .(धनसे) मिलाप करानेके लिये होलियार दुती है। उत्तमगति सपी वधूसे प्रीति पालन करनेके लिये सखी समान है, कुगति