________________
३७
चतुर्य भाग। नारायण-तीन खंडके राजाधिराज होते हैं। नारायण दीक्षा 'धारण नहिं करते । उनका राज्यावस्थामें ही मरण होता है इस कारण वे नरकगामी होते हैं। नरकसे निकलकर फिर तीर्यकगदि होकर मोक्षपदको प्राप्त होते हैं। ऐसे नारायण वर्चमानमें अर्थात् गत चतुर्थ कालके अंतमें १ त्रिपिष्ट २ द्विपिष्ट ३ स्वयंभू ४ पुरुपोत्तम ५ नरसिंह ६ पुंडरीक ७ दचदेव ८ लक्ष्मण और ६ कृपण ये नव हो गये हैं।
प्रतिनारायण-भी तीन खंडके अधिपति होते हैं। जिनकी मृत्यु राज्यावस्थामें ही सुदर्शन चक्रसे नारायणके हायसे होती है और फिर नारायण उन्ही तीनों खडोंका राज्य करता है । प्रतिनारायण भी नरक जाकर परंपरा मोक्षपदको प्राप्त होते हैं। ऐसे प्रतिना. . रायण १ अश्वग्रीव २ तारक ३ मेरुक ४ निशुम ५ मधुकैटभ ६ प्रहलाद ७ वलि ८ रावण और ६ जरासिन्धु ये नव हो गये हैं।
वलभद्र-नारायणकी अपर माताके उदरसे उत्पन्न हुये नियमसे वडे भाई होते हैं । नारायण और बलभद्रमें अनन्यप्रीति होती है। नारायणकी मृत्युके पश्चात् बलभद्र मुनि होकर स्वर्ग अथवा मोक्ष ही जाते हैं। ऐसे वलभद्र १ विजय २ अचल ३धर्म. प्रभ ४ सुप्रभ ५ सुदर्शन ६ नंदि ७ नंदिमित्र ८ पद्म अर्थात् रामचन्द्र और ६ कृष्णके भाई बलदेवजी ये नव हो गये हैं। ___ इसी प्रकार : नारद ११ रुद्र और २४ कामदेवादिक भी हो गये हैं। इन सब उत्तम पुरुषोंका जिसमें चरित्र लिखा हो उस को पुराण वा प्रथमांनुयोग (इतिहास) कहते हैं।