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जैनवाल बोधक
६६. ब्रह्मगुलालमुनि |
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विक्रमसंवतके सोलह सौ और सतरह सौ के वीचमें सूरदेश के अन्तर्गत एक टापा नामका नगर था । उस नगर में पद्म नगर निवासी पद्मावतीपुरवालमेंके पांड़े दीरंग और इल नामके दो भाई व्यापाराथ आये थे। उस टापा नगरमें ये दोनों भाई अपने धर्म कर्ममें सावधान होकर प्रसिद्ध हुये ! हल्ल नामका छोटा भाई एक दिन कार्यवश ग्रामांतर में गया था उनके पीछे टापा नगर में आग लगी सो वहुतसे घर कुटुम्ब पशु जलकर मर गये । उसमें हलका कुटुंब भी मय दिरगके सब जलकर मर गया हल्लने प्राकर सुना तौ बड़ा ही दुःखी हुआ । टापाके राजा के पास जाकर रोया धोया तौ राजाने इसको धर्मात्मा गुणी समझ अपने पास रख लिया । फिर थोड़े दिन में इसका विवाद करके घर गृहस्थी बना दिया | उस हलके कुछ दिन बाद सुन्दर गुणी पुत्र हुआ उसका नाम ब्रह्मगुलाल रक्खा गया। यह लड़का वडा होने पर समस्त प्रकारकी विद्या पड़कर बहुतही चतुर हो गया । परंतु संगीत शास्त्र में ( नाचने गानेमें) वड़ा नामी हुवा। नाटक स्वांग भरकर नाचने गानेको बहुत अच्छा समझता था । सो इसी . काममें रहते रहते बहुरूपियाके भेव लानेमें बड़ा ही चतुर होगया जिससे राजकुमारकी प्रीति ब्रह्मगुलाल पर बहुत हो गई । नित्य. नये स्वांग लालाकर राजा व राजाके पुत्रका मनोरंजन किया करता था ।
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