________________
जैनवालवोधकमुनिमहाराजकी दंतपंक्ति जो विषमरूप थी उसे सुंदर कुंदके पुष्प समान कर दिया और उनका पुष्पदंत नाम सार्थक कर दिया और इसी प्रकार भूतजातिके देवोंने भूतवली मुनिकी तूर्यनाद जय. घोष तथा गंधमाल्य धूप श्रादिसे पूजा करके उनका भी सार्थक नाम भूतपति रख दिया । - दुसरे दिन प्राचार्य महाराजने यह सोचकर कि मेरी मृत्यु संनिकट है यदि ये समीप रहेंगे तो ये बड़े दुःखी होंगे, उन दोनों मुनियोंको कुरीश्वर भेज दिया और तब वे दिन चलकर उस नगरमें पहुंचे। वहां आषाढ़ कृष्ण पञ्चमीको योग ग्रहण करके वर्षाकाल वहीं पर पूर्ण किया। तत्पश्चात् दक्षिणकीतरफ विहार करके कुछ दिनोंमें वे दोनों ही महात्मा करहाट नगरमें पहुंचे। वहां पर श्रीपुष्पदंतमुनि तौ अपने जिनपालित नामके भानजेको मुनिदीक्षा देकरके अपने साथ लेकर वनवासदेशमें जा पहुंचे। इधर भूतबलि महाराज द्रविड़देशके मथुरानगरमें पहुंचकर ठहर गये। करहाटनगरसे इन दोनों मुनियोंका साथ छूट गया।
श्रीपुप्पदंतमुनिने जिनपालितको पढ़ानेकी इच्छा करके कर्म प्राभूतकी छहखंडोंमें उपसंहार करके ग्रंथरूप रचना करनी चा. हिये ऐसा विचार करके उन्होंने प्रथम ही जीव स्थानाधिकार की (जिसमें कि-गुणस्थान जीव सामासादि वीसप्ररूपणामोंका
___.१ दक्षिण देशमें पहिले शुक्लपक्ष पश्चात् कृष्णपक्ष होता है वह भी अगले महिने कृष्णपक्ष होता है । अर्थात हमारे उत्तर हिंदुस्थानके पंचांगों के अनुसार यह आषाढ कृष्ण श्रावणका कृष्णपक्ष है.।..