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जैनवालवोधक
भाई थी । गुरुसे स्नेह होनेका कारण पूछा- उन्होंने भ्रातृभावही कारण बताया । तव प्रग्निभूतिने उसे धर्मका उपदेश दिया सम्यक्त्व तथा पांच अणुव्रत उसे ग्रहण कराये । नागश्री व्रत ग्रहण. करके जाने लगी तब मुनिराजने कहा कि हां ! वच्ची सुन ! तेरे पिता यदि तुझसे इन व्रतोंको लेनेके कारण नाराज हों तो हमारे व्रत हमे आकर वापिस देजाना !
इसके बाद नागश्री घर गई तौ व्रत ग्रहणकी बात सुनकर पिता घड़ा नाराज हुष्मा और नागश्री से बोला कि बेटी तू बड़ी भोली हैं, चाहे जिसके बहकानेमें आ जाती है तू नहीं जानती कि अप ने पवित्र ब्राह्मण कुलमें उन नंगे मुनियोंके दिये व्रत नहिं लिये। जाते । वे अच्छे लोग नहिं होते इस लिये उनके व्रत छोड़ दे । तव नागश्रीने कहा कि पिताजी ! उन मुनिमहाराजने आते समय कह दिया था कि-यदि तुझसे तेरे पिताजी इन व्रतों के छोड़नेके लिये कहैं तो तू हमारे व्रत हमें यहां आकर वापिस दे जाना । सो श्राप चलिये जो उनके व्रत वापिस दे आऊं । सोमशर्मा नागभीको लेकर क्रोध कर्त्ता गर्जता हुआ मुनियोंके पास चला । नागश्रीने रास्ते में - एक आदमी बंधा हुआ पड़ा था कई जने उसे निर्दयतासे मार रहे थे उसे देखकर पितासे पूछा कि निदर्यतासे क्यों मारा जाता है ? सोमशर्माने कहा कि इसको एक वनके लड़के के रुपये देने थे वनियेके लड़केने तकाजा किया इसने रुपये न देकर उसे जान से मार डाला इस कारण अपने राजाने इसे प्राणदंडकी आज्ञा दी है इस कारण राजपुरुष इसे मारते पीटते हैं। नागश्रीने कहा-मुझे मुनिमहाराजने यही तो अहिंसा