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________________ चतुर्थ भाग। ३२३ के यहां कुचीका जन्म धारण किया । कुत्ती मरकर चंपापुरीमें ही एक दुसरे चंडालके यहां जन्मांध लड़की हुई । इसके सारे शरीरमें पदबू होनेसे इसके माता पिताने उसे छोड़ दिया । परन्तु भाग्यसे बच रही, एक जामनके पेड़के नीचे पड़ी २ जामुन खा रही थी । देव योगसे सूर्यमित्र मुनिअग्निभूतिको साथ लेकर उसी तरफ प्रा निकले थे सो अग्निभूतिकी दृष्टि इस कन्या पर पड़ी तो हृदयमें कुछ मोह और दुःख हुआ तव गुरुसे पूछा कि-प्रभो इस लड़कीकी दशा बड़ी कष्टमय है यह कैसे जी रही है । अवधिशानी सूर्यमित्र मुनिने कहा-तुमारे भाई वायुभूतिने हमारी घोर निंदा की थी उसके पापसे उसे कोढ़ हुश्रा, मरकर गधा और सूअर तथा कुत्ती होकर अव यह चंडालके यहां जन्मांध और दुर्गंधमय शरीरवाली लड़की पैदा हुई है। इसकी उसर वहुत थोड़ी रह गई है इस लिये तुम जाकर इसे अणुव्रत देकर सन्यास देआवो । अग्निभूतिने जाकर उसे दुःखका कारण वता 'कर अणुव्रत दिलवाये सन्यास लिवा दिया सो मरकर व्रतके प्रभावसे चंपापुरीमें नागशर्मा ब्राह्मणके यहां नागश्री नामकी कन्या हुई। एक दिन नागधी कितनी ही लड़कियोंके साथ वनमें नागपूजा करनेको गई थी सी पुण्ययोगसे सूर्यमित्र और अग्निभूति मुनि भी विहार करते इसी वनमें आकर विराजे थे। उन्हे देख कर नागरीके मनमें अत्यंत भक्ति हो गई। वह उनके पास गई, बना करके उनके पास बैठ गई। नागश्रीको देखकर अग्निभूतिके मनमें कुछ स्नेहका उदय हुआ। क्यों कि यह पूर्व जन्ममें इसकी
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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