SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्य भाग। २४१ का लाम किया। शरीरको छोड़ते ही क्षणमात्रमें शुद्ध प्रात्माने उसी ही ध्यानाकारको धारण किये हुए निर्वाण भूमिकी सीधपर ही जाकर लोकाग्रनिवास किया और अनंत कालके लिये परम मुली हो गये। वह स्थान जहाँसे श्रीप्रभुने निर्वाण प्राप्त किया था सर्व जैनियों से अति माननीय और पूजनीय विहार स्टेशनले ६ मील पोखर पुर (पावापुर) है । उस ग्रामके बाहर एक वृहत् सरोवरके मध्य में एक जिनमंदिर निमापित है जिसमें भगवानकी चरण पादुकाएं शोभायमान है । प्रतिवर्ष निर्वाणके दिन अर्थात् कार्तिकवदी अमावस्याको बड़ा भारी मेला होता है । कलकत्ता, पारा, छपरा रदूर दूरके भनेक यात्री दर्शन पूजनार्थ माते हैं। जिस समय भगवान मोक्ष पधारे उसी दिन गौतमस्त्रामीको जिनको गणघरोंका ईश गणेश कहते हैं केवलमानरूप लक्ष्मीकी प्राप्ति हुई ! इसप्रकार उस दिन इंद्रादिक देवोंने मगवानके शरीरका विधिपूर्वक अग्निसंस्कार करके निर्वाण लक्ष्मीको पूजनकी जिसको मोक्षलक्ष्मी व महालक्ष्मी भी कहते हैं । उसी दिन मनुष्योंने दिन भर दान पूजन संयमादिपूर्वक निर्वाण महोत्सव और केवलहान प्राप्तिका उत्सव किया और रात्रिको यन्नाचारसहित दीपोत्सवपूर्वक नृत्य गीत भजनादि करते हुये रात्रिजागरण किया और घर घरमें नानाप्रकारके मंगलाचरण किये गये। उस दिनसे फिर प्रतिवर्ष भगवानकी स्मृतिके लिये इसीप्रकार ही भगवान की निर्वाणपूनापूर्वक दीपोत्सवपर्व मानने लगे, जिसको दीपा
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy