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२१ . जैनवालबोधकहुये मौनसे ध्यान करने लगे जिससे चौधा मनःपर्यय शानं उत्पन्न हुआ। __ ध्यान पूरा होने पर भोजनार्थ विहार किया सी जमीनकी तरफ ही दृष्टि रखकर ईपिय शोधन करते हुये गुल्मखेट नामक नगरमें पहुंचे। वहाँका राजा ब्रह्मदत्त भगवानको देखकर अत्यंत हर्पित हुश्रा और इन्हें उत्तम पात्र समझ कर नमस्कार किया और घरमें ले जाकर सोनेके सिंहासन पर बैठाया, प्रामुक जल से चरण प्रक्षालन करके अष्टप्रकारसे पूजन किया और हाथ जोड़कर नमस्कार किया तथा मन वचन और कायको शुद्ध रखकर भगवानको आहार प्रदान किया। ऐसे उत्तम पात्रको विधिपूर्वक भक्तिसे आहार देनेसे उसके घर पर देवताओंने पंचाश्चर्यवृष्टि को । जिससे राजाकी बड़ी कीर्ति विस्तरी। तदनंतर भगवान वनमें आये और पुन: ध्यान करनेको वैठः गये। उनके उस एकाग्र ध्यानके माहात्म्यसे उस बनके समस्त पशु परस्पर वैरभाव छोड़ कर प्रीतिसे परस्पर खेलते हुये रहने लगे। सिंह किसीको मारता नहीं, सांप किसीको काटता नहीं इस प्रकार सर्वत्र साम्यभाव फैल गया।
एक दिन भगवान दीक्षावन कायोत्सर्ग ध्यानमें निमग्न होकर खड़े थे । उस समय शंवर नामक कमठका जीव जो ज्योतिषी देव हुवा था । वह विमानमें बैठकर कहींको जाता था सो उसका विमान भगवानके मस्तक पर पाते ही रुकगया । तव शंवर ज्योतिपीने अवधिज्ञानसे देखा तो मालूम हुआ कि मेरा पूर्वजन्म का वैरी नीचे खडा है। उसका बदला लेना चाहिये ऐता मनमें
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