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जैनबालवोधकउदय हुआ समझना और मुक्तिरूपी लक्ष्मीको सौभाग्य प्राप्त हुवा है। भगवन् ! यह समस्त जगत् प्रमादसे वेशुध होकर सो रहा है जब आपकी दिव्यध्वनिरूपी गर्जना होगी तब ही यह जगत जागेगा। यह सब आप जानते ही हैं। आप स्वयंबुद्ध है, अन्य जीवोंको उपदेश देने में समर्थ हैं आपको उपदेश देनेकी किसकी सामर्थ्य है पाप तौसूर्य हैं आपके सामने दीपकका प्रकाश करना व्यर्थ है। आपके वैराग्यके समय हम लोगोंको यहां आनेका नियम है इसीलिये हम अाकर आपसे प्रार्थना करें इतना ही नियोग है। बाकी करने योग्य कार्य तौ सब पाप करते ही है इसलिये हे प्रभो ! अव आप महाव्रत धारण करके कर्मरूपी शत्रु का शीघ्र ही संहार करें। भ्रमरूपी अंधकारको नष्ट करदें जिसमे स्वर्गमुक्तिका मार्ग जगतके जीवोंको ठोक २ मालूम हो जाय इस प्रकार बड़ी भक्तिके साथ स्तुति करके वारंवार भगवानके चरणोंमें नमस्कार करके सव देव अपने २ स्वर्गमें चले गये।
इसके पश्चात् चार प्रकारके देवोंके इन्द्र अपने २ वाहनों पर चढकर परिवारसहित बड़े हर्षके साथ भगवानके दीक्षा कल्याणक करनेके लिये आये । नानाप्रकारके वाजे वजने लगे। देवांगनायें नृत्य करती, किनरियां मधुर स्वरसे गाती और समस्त देव जय जयकार घोषकरने लगे। सौधर्मेंद्रने भगवानको क्षीर समुद्रसे भरकर लाये हुये सुवर्णके. कलशोंसे सिंहासन पर बैठाकर विधिपूर्वक अभिषेक किया । और सर्व प्रकार वस्त्राभरण धारण कराकर शरीर पर चंदन चर्चित किया। इस समय भगचान ऐसे.शोभते थे मानो मुक्तिस्त्रीको वरण करनेके लिये । .......... .. .. ...