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________________ चतुर्थ भाग। मोड़ दिया। जीजपनसे रहने लगा।घसनीयों को मारनेका त्याग कर दिया. चित्तमें तमा धारण करके शत्रु मित्रको समान समझने लगा । अष्टमी चतुर्दशीको प्रोपधापयास करने लगा। सोधन सूके परे मोर घास खाकर रहने लगा । दूसरोंके चले दुये मागमें दी जाने लगा। दुसरे ताधियों का गदला किया मुगा प्रामुक पानी पीने तगा। शरीर पर पानी कीचड़ धृल डालना पगेरद समस्त अनुचिन क्रियायें छोड़ दो। रास्ते चलते प्रम जीयों को देनकर उन बचाकर चलने लगा। किसीभी हथिनीकी नरफ नजर स्टाकर देग्पनका सर्वथा त्याग कर दिया। इस. मार उलम प्रापर्य पालन करता हुग्रा गानाप्रकारके शारीरिक कर सहने लगा। अपने शरीरफे हिलानेले किसी जीपको कोई प्रकार की पोसा न दी जायरम अभिनायसे अपने शरीरकी प्रयुक्त इजनजन मिया भी बंद कर दी। इसप्रकार रद प्रतिमाओंके पालन करने में उस बायोमासरीर बहुत ही तोग्य हो गया । उसका निरंतर परमेष्ठीको चितयन करते हुये बहुतसा फाल पीन गया तर एक दिन यही जोरकी प्यास लगनेसे यह येगवती नामकी नदी पर पानी पीनके लिये गया । उस नदी किनारेपर कमठका जीय कट नामका सर्प होकर बैठा था, सो उसने पूर्वभयो धेरके कारण उस दायोको काट पाया। हाथीने अपना मरण समझ सन्यास धारणकर लिया। उसके प्रभावसे मरकर या पारगये स्वर्गके स्वयंप्रभ विमानमें शशिप्रमनामका व हुमा पहा अपधिमान योगसे मालूम हुमा फि मैंने हाथोके जन्ममें यत धारण किये थे उसी प्रमावसे यहां स्वर्गमें आकर उत्पन्न
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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