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चतुर्थ भाग..
१७१ इस ही भरतक्षेत्रमें दक्षिणपूर्व दिशामें महेंद्रपुर नामका एक. नगर था । उसके राजाका नाम महेंद्र, रानीका नाम हृदयवेगा था,इनके अरिंदम आदि १०० पुत्र और अंजना नामको एक पुत्री थी.जिसकी सुन्दरता अद्वितीय थी। इसको योवनवती देखकर इसके विवाह करनेकी चिन्ता हुई । मंत्री श्रादिने रावण वगैरह उनके वर वताये परंतु शेषमें राजा प्रह्लादके पुत्र वायुकुमारको ही वर ठहराया। • एक दिन-वसंत ऋतुमें अष्टाह्निका पर्वमें राजा महेंद्र नंदीश्वर द्वीपमें परवारसहित भगवानकी बंदनार्थ गये थे। वहांसे पाते हुये कैलास पर्वतपरके चैत्यालयों के दर्शनार्थ गये तो वहां पर राजा महादसे भेट हो गई। प्रह्लादने मित्रकी कुशलक्षेम पूछो । राजा महेंद्रने कहा कि-जिसके विवाहयोग्य पुत्री हो उसके कुशलक्षेम. कहाँ हो ? अञ्जनाको विवाहयोग्य देखकर उसके वर ढूंढनेकी चिंतामें वड़ी व्याकुलता रहती है. : हमारी दृष्टि तौ श्रापके पुत्र पवनंजय पर है।राजा प्रह्लादने कहा कि मुझे भी पुत्रके विवाह की चिन्ता लगी हुई है सो आपके वचन सुन बहुत पानंद हुआ जो आपके अंच गई सों हमें भी प्रमाण है। मेरे पुत्रका बड़ा भाग्य है जो आपने कृपाकर कन्याप्रदानकी । तीन दिन बाद फिर क्या था ?. मानसरोवर पर ही विवाह करनेका मुहूर्त निश्चय हो गया। दोनों ओर आनन्द मङ्गल होने लगे।
:: पवनंजयने जव अपने विवाहका समाचार सुना तो अंजना को एक बार देखनेकी प्रबल इच्छा हुई और अपने प्रहस्तमित्र सहित विमानसे अंजनाको देखनेके लिये गये। अंजना अपनी