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________________ चतुर्थभाग १५३ शरीर भोगोंले उदास हो गये। रामने राज्यादि संपदा लेकर सुखसे रहने को बहुत कुछ कहा पर इन्होंने नहीं माना उसी दिन छप्पन हजार सुनियोंके संघसहित अनंतवीर्याचार्य लंका प्राये थे, उसी दिन उन्हें केवलज्ञान हुआ । रामचंद्र के साथ वानरवंशी और राक्षसवंशी सबही वंदनाको गये । कुम्भकरण इंद्रजीत और मेघनादने दीक्षा ली। साथ ही मंदोदरीने भी अडतालीस -हजार राणियों सहित शशिका आर्यिकासे आर्याके व्रत लिये । केवलकी वंदना के पश्चात् रामलक्ष्मणने साथियों सहित लंका में प्रवेश किया। सीतासे मिले । लक्ष्मणने चरणोंमें शीस धरा । सुग्रीव हनुमान यादिने सीताको नमस्कार कर भेटे दीं । तत्प'श्चात् रावण के महजमें शांतिनाथ के मंदिर में वंदना करने को गये । वहां विभीषण ने अपने पितामह सुमाली और माल्यवानको तथा पिता रत्नश्रवाको रावण के शोकशमन करने के लिये समझाया और अपने महलोंमें जाकर अपनी विदग्धा नामक पटरानी सहित श्रीरामलक्ष्मण के पास जाकर भोजनका निमंत्रण दिया । उनके 'साथही जाकर राम लक्ष्मण सीताने भोजन किया । विभोपणने - खूब सत्कार किया । तत्पश्चात् - रामलक्ष्मणके अभिषेक करने की तैयारियां हुई तौ दोनों भाइयोंने इनकार कर कहा कि - हमारे पिता भरतको राज्य दे गये हैं इसलिये हम जो राज्यप्राप्त करेंगे वह भरतका ही होना चाहिये । परंतु जब सबने हट किया और कहा किदोनों भाई नारायण बलभद्र हैं तव स्वीकार किया । अभिषेक के पश्चात् लक्ष्मणने जिन २ कन्यावोंसे मार्गमें विवाह किया था
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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