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________________ १५६ जैनवाल बांधक भाई भामंडल को दूत भेजकर बुलाया सो वह एक हजार भत्तौहणी सेना लेकर आया । रामचंद्र लक्ष्मणकी कुल सेना दो हजार अक्षौहिणी हो गई और रावणकी कुल सेना चार हजार भक्षौ - हणी थी जिसमें अढ़ाई करोड़ निर्मलवंशमें उत्पन्न हुये राक्षसवंशी कुमार थे 1 रणभेरी बजते ही दोनों तरफकी सेना सजधज कर रणभूमि में विधिपूर्वक खड़ी हो गई । इशारा करते ही वाणोंकी वर्षा होने लगो, दोनो तरफके सुभट अपना २ बल दिखाने लगे। राम लक्ष्मणने कुंभकरणका घेरकर नागपाश से बांध लिया। लक्ष्मणने - इन्द्रजीत को पकड़ लिया । रावण विभीषण पर तीर छोड़ता ही था कि लक्ष्मणको तीर ताने सन्मुख देखकर लक्ष्मण पर शक्तिवाण चलाया जिसके लगते ही लक्ष्मण वेहोश हो जमीन पर गिर पड़ा। भाईको गिरा देखकर रामचंद्र के होश हवाश जाते - रहे और साहस टूट गया और उस दिन वे युद्ध बंद करके लक्ष्मणका शिर गोद में लेकर रोने लगे-हाय लक्ष्मण ! तू बोलता क्यों नहीं ? तुझे यह कैसी निद्रा आई । तूने अबतक तौ साथ दिया । अव क्यों रूठ गया ? भैया ! उठ आखें खोल देख तो कैसा • तड़फ रहाहूं मुझे अकेला यहां क्यों छोड़ दिया ? भैया तेरी माने तू मुझे धरोहररूप सौंपा था अब मैं उसे जाकर क्या दिखाऊंगा। ३ एक अक्षाहणीसेनामें इक्कीस हजार भाठसौ सत्तर रंथ, इतने ही -हाथों, पैंसठ हजार छह सेा दश घोडे और एक लाख नव हजार तीन सौ - पंचास - पियादे होते हैं ।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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