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चतुर्थ भाग |
१५५ सीताजी को आहारके लिये कहा । भोजन करनेके वाद कहाकि माता तुम मेरे कंधे पर बैठ जावो तो मैं अभी रामचंद्रजी के पास पहुंचा दूं । परंतु सीताने कहा कि--विना स्वामीकी श्राज्ञाके मैं नहिं जा सकती । सो अब तुम स्वामीके पास जाकर सव समाचार कहो । सीताने रामको विश्वास करने के लिये चार पांच एकांतविहारकी बातें कहकर शिरका चूड़ामणिरत्न दिया ।
इधर मंदोदरीने हनुमानके सब समाचार रावण से कहे तौ रावणने हनुमानको पकड कर लाने के लिये अनेक सुभट भेजे, परंतु हनुमानने सबको मार भगाया । तच मेवनाद इंद्रजीत आदि सबको भेजा सो हनुमानने लंकासे बाहर खूत्र युद्ध करके शत्रुसेनाका ध्वंस किया परंतु शेपमें इन्द्रजीत नागपाशसे बांधकर रावण के पास ले गया । रावणने बहुत कुछ बुरे बन्न कहे। हनुमानने भी खूब अच्छा जवाब दिया तत्पश्चात् लोहसंकल से बांधकर शहर में फिरानेको भेजा परंतु हनुमान सकल तोडकर श्राकाशमार्ग से चल दिये। जानेसे पहले रावण के सुंदर महल अच्छे २ अन्योंके मकान, बाग, कोठा, दरवाजे वगेरह अपने पावों से चूर्ण करके लंकाकी सब शोभा नष्ट भ्रष्ट कर दी और तत्काल ही विमानसे रामचन्द्र के पास आकर सीताके कुशल समाचार कहे । लंका के समाचारोंको सुनकर रामचंद्र लक्ष्मण क्रुद्ध हो युद्ध करनेको तैयार हो गये ।
इधर विभीषणने फिर रावणको समझाया चौरावण विभीपणको मारनेके लिये उठा सो विभीषण रावण से नाराज होकर तीस प्रक्षौणी सेना लेकर रामको पक्षमें आया । इधर सीता के