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________________ चतुथ भाग । १२३ आदि समस्त जगहके दर्शन यात्रा व उत्सव देखनेका वृतांत } कहकर एकांत में ले जाकर कहा कि "मैं दर्शनके लिये पर्यटन करता २ लंकामें रावणको सभामें गया था वहां एक ज्योतपीसे रावणने पूछा कि मेरी मृत्यु किस कारणसे होगी तब ज्योति-पीने कहा कि - राजा दशरथके पुत्र और राजा जनककी पुत्रीके कारणसे होगी सो रावण बड़ा घबड़ाया। विभीषणने कहा- आपको धवड़ानेकी जरूरत नहीं, मैं इन दोनोंके पुत्र पुत्रीके पैदा होने-से पहिले ही उनका सिर काट लाऊंगा । फिर मेरेसे पूछा कि महाराज ! आप सर्वत्र विहार करते हैं सो इन दोनों राजावका हाल जानते होंगे। तव मैंने कहा कि- मैं बहुत दिनोंसे इनके यहां गया नहीं सो वहां जाकर दोनोंकी खबर कहूंगा ऐसा कह कर मैं दौड़कर तुमारे पास आया हूं सो महाराज ! आप कुछ.दिनतक भेष बदलकर देशांतर में चले जांय तौ ठीक है। विभीपण यापके मारने को अवश्य श्रावैगा, मुझे शीघ्रही राजा जनक कभी यह खवर देनी है ।" ऐसा कहकर नारदजी श्राकाशमार्गसे तुरंत ही मिथिलापुरी पहुंचे और महाराज जनकको भी सावधान कर दिया। सो दोनोही राजावोंके मंत्रियोंने राजावोंको तौ भेष बदलकर देशाटन करनेको भेज दिया और दोनों ही महाराजावोंका एक एक नकली पुतला बनाकर सतखने महलमें रख दिया और महाराज बीमार हैं सो महलोंमें ही रहते हैं, यह. प्रसिद्ध कर दिया और यहांतक गुप्त प्रबंध किया कि दोनों मंत्रीऔर राजांयोंके सिवा पांचवा मनुष्य कोई भी इस भेदको नहि : 1 जानता था । .
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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