SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ भाग । देखे श्री जिनराज, काज करना कछु नाही । देखे श्री जिनराज, हौंस पूरी मन माही ॥ तुम देखे श्री जिनराज पद भौजल अंजुलि जल भया । चितामनि पारस कल्पतरु, मोह सबनिस उठ गया ॥ १ ॥ देखे श्री जिनराज, भाज अघ जांहिं दिसंतर। देखे श्री जिनराज काज सब होहि निरंतर 3 • देखे श्री जिनराज, राज मन वांछित करिये । देखे श्री जिनराज, नाथ दुख कबहु न भरिये ॥ तुम देखे श्री जिनराज पद, रोम रोम सुख पाइये । धनि आज दिवस धनि अव घरी, माथ नाथको नाइये : धन्य धन्य जिन धर्म, कर्मकौं छिनमें तोरे । धन्य धन्य जिन धर्म, परम पदसों हित जोरें ॥ धन्य धन्य जिन धर्म, मर्मकौ मूल मिटावे | धन्य धन्य जिन धर्म, कर्मकी राह बतावै ॥ जग धन्य धन्य जिन धर्म यह, सो परगट तुमने किया । भवि खेत पाप तप तपनकौं, मेघ रूप है सुख दिया ॥ ३ ॥ 0 तेज सूरसम कहूं तपत दुख दायक प्रानी । · कांति चंदसम कहूं, कलंकित मूरत मानी ॥ वारिधिसम गुन कहूं, खार में कौन भलप्पन | पारस सम जस कहूं, प्रापसम करै न परतन ॥ इन आदि पदारथ लोकमें, तुम समान क्यों दीजिये । तुम महाराज अनुपम दशा, मोहि अनूपम कीजिये ॥ ४ ॥ १ सुखकी, आत्म हितकी । ५
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy