SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२ जैनवालबोधः(मालिक) हों, उसे साधारण नामकर्म कहते हैं। - ७७ जिस कर्मके उदयसे शरीरके धातु उपधातु अपने ठिकाने रहैं उसको स्थिर नामकर्म कहते हैं और जिस कर्मसें शरीरके धातु उपधातु अपने अपने ठिकाने नरहें उसकोअस्थिर नामकर्म कहते हैं। . . . . . . . ७८ । जिस कर्मके उदयसे शरीरके अवयव सुन्दर हो उस को शुभंनाम कर्म कहते हैं। .. ___७ । जिसके उदयसे शरीरके अवयव सुन्दर न हों उसको अशुभ नामकर्म कहते हैं। . .८० । जिस कर्मके उदयसे दुसरे जीव अपनेसे उसको सुभग नाम कर्म कहते हैं | । जिस कर्मके उदयसे दूसरे जीव अपनेसे दुश्मनी या वैर करें .उसको दुर्भग नामकर्म कहते हैं। ८२ जिस कर्मके उदयसे अच्छा स्वर हो उसे सुस्वरनाम. कर्म कहते हैं। ' ८३। जिसके उदयसे स्वर अच्छा न हो उसे दुःस्वर नामकर्म कहते हैं। । जिस कर्मके उदयसे कांति सहित शरीर पैदा हो उसको आदेय नामकर्म कहते हैं। ५। जिसके उदयसे कांति सहित शरीर न हो उसे प्रनादेय नामकर्म कहते हैं। : . . . . ८६ जिस कर्मके उदयसे संसारमें जीवको प्रशंसा हो उस
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy