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जैनवालबोधः(मालिक) हों, उसे साधारण नामकर्म कहते हैं। - ७७ जिस कर्मके उदयसे शरीरके धातु उपधातु अपने ठिकाने रहैं उसको स्थिर नामकर्म कहते हैं और जिस कर्मसें शरीरके धातु उपधातु अपने अपने ठिकाने नरहें उसकोअस्थिर नामकर्म कहते हैं। . . . . . . .
७८ । जिस कर्मके उदयसे शरीरके अवयव सुन्दर हो उस को शुभंनाम कर्म कहते हैं। .. ___७ । जिसके उदयसे शरीरके अवयव सुन्दर न हों उसको अशुभ नामकर्म कहते हैं। .
.८० । जिस कर्मके उदयसे दुसरे जीव अपनेसे उसको सुभग नाम कर्म कहते हैं |
। जिस कर्मके उदयसे दूसरे जीव अपनेसे दुश्मनी या वैर करें .उसको दुर्भग नामकर्म कहते हैं।
८२ जिस कर्मके उदयसे अच्छा स्वर हो उसे सुस्वरनाम. कर्म कहते हैं। ' ८३। जिसके उदयसे स्वर अच्छा न हो उसे दुःस्वर नामकर्म कहते हैं।
। जिस कर्मके उदयसे कांति सहित शरीर पैदा हो उसको आदेय नामकर्म कहते हैं।
५। जिसके उदयसे कांति सहित शरीर न हो उसे प्रनादेय नामकर्म कहते हैं।
: . . . . ८६ जिस कर्मके उदयसे संसारमें जीवको प्रशंसा हो उस