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________________ चतुर्थ भाग । थिति लाख बहतरि बरसकी, जयावती माता सुमर । सिरनाय नमों जुग जोरिकरि भी जिनंद भवताप हर ॥ १२ ॥ नाम - श्रीवासुपूज्य | पिता-वसुराजा । माता - जयावती, अन्मस्थान - चंपापुर | पद चिन्द - महिप शरीरका रंग - लाल । पूर्वजन्मस्थान-शवां स्वर्ग शरीरको ऊंचाई - सत्तर धनुष, श्राडु वहत्तरलाख वर्ष, पद्मासन से मुक्ति गमन १२४ १३ | श्रीविमलनाथ तीर्थकर | · ર विमलविमल अवलोक, लोक द्वादश बस स्वामी । कंपिल्लापुर श्राय, काय कंचन जगनामी ॥ कृतवर्मा भूपाल, भात जयश्यामा माता । सुकर चिन्ह निसान, साठधनु तन प्रविस्राता || थिति साठि लाख वरसन सुखी, खरगासन सत्र जु वर । सिरनाय नमीं जुग जोरिकर, भी जिनंद भवतापहर ॥ १४ ॥ ---- नाम - विमलनाथ । पिता - कृतवर्मा : माता -जयश्यामा | नगरी - कंपिलापुर | चरनचिन्ह - सूर | आयु -- घाउलाख बरस । कायकी ऊंचाई - साठधनुष । पूर्व जन्नस्थान - बारहवां स्वर्ग । शरीरका रंग-कंचनमय । खड्गासन से मुक्तिगमन ॥ १३ ॥ १४ | श्री अनंतनाथ तीर्थकर | सुगुन अनंत अनंत, अंतसुर सोल जिनेश्वर । सिंहसेन नृपराय, माय जयश्यामाके घर कनक वरन परकांस, तास पंचास चाप तन । श्राव लाख है तीस, ईस को सेहो लच्म ॥
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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