________________
तृतीय भाग ।
७३
निश्चय हो गया था कि- मुनिकी कही हुई सभी बातें सच होगी परन्तु तौ भी उन्हे कुछ संदेह या इसलिये उन्होंने विजली गिरनेके भयसे रक्षा पानेकी इच्छासे एक लोहेका संदूक बनवाया और विजली गिरनेका जो समय मुनिराजने बताया था उससे कुछ पहिले उस संदूक में बैठकर नोकरों को आज्ञा दी कि गंगाके गहरे जल में छोड़ देना और प्राध घंटा बाद निकाल लेना | उसे आशा थी कि मैं इस उपाय सेवच जाऊंगा क्योंकि जल में विजलीका असर कुछ नहि होगा | परन्तु उसकी यह आशा करना वेसमझी थी क्यों कि प्रत्यक्ष ज्ञानियोंकी बातें कभी झूठ नहिं होंती, थोडी ही देर में विजली चमकने लगी और एक बडे भारी मगर ने संदुकको ऐसे जोरसे उछला दिया कि संदूक जलके बाहर दो हाथ ऊंचे तक उछल आया और सन्दूकका बाहर. होना था कि उसी समय बडे जोरसे कडक कर बिजली और वह भस्म हो गया | पाखानेमें पांच रंगका कीडा
•
उस सन्दूक पर गिर पडी जिससे राजा मरकर अपने उत्पन्न हो गया ।
पिता के कहे माफक शुभ राजाके पुत्र देवर तिने अपने पाखानेमें जाकर देखा तो उसे वहां पांच रंगका कीटा. दीख पडा और उसने अपने पिताकी आज्ञानुसार मारनेके लिये उसे उठाना चाहा तो वह तुरन्त ही विष्ठा ढेरमें घुस गया । देवरात को इससे बडा प्राश्चर्य हुवा, बहुत उपाय