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जनपालवोधकएक दिन देवगुरु नापके अवधिज्ञानी मुनिराज मिथि'लामें आये । शुभराजा बहुतसे भव्य जनोंके साथ मुनि बंदनाके लिये गया। मुनिकी सेवा पूजा करके उसने धर्मोपदेश सुना । अंतमें उसने अपने भविष्यके संम्बन्धमें प्रश्न कियायोगीराज! कृपा करके वतलाइये कि आगेको मेरा जन्म कहां होगा । उत्तरमें मुनि महाराजने कहा कि- राजन् तुमारा भविष्य अच्छा नहिं है । प्रथम तौ शहरमें घुसते ही तुमारे मुखमें विष्टाका प्रवेश होगा फिर तुमारा छत्रभंग होगा और आजसे सातवें दिन विजली गिरनेसे तुमारी मृत्यु होगी सो मरकर अपने ही पाखानेमें एक पांच रंगके बडे कीडेकी देह प्राप्त होगी। सच है, पापके उदयसे सभी कुछ होता है।
मुनिका शुभके सम्बन्धका भविष्य कथन सच होने लगा। दूसरे ही दिन बाहरसे लोटकर जब वह शहर में घुसने लगा तौ घोडेके पावोंकी ठोकरखे:उड कर थोड़ा सा विष्ठा का अंश राजाके मुहमें आ गिरा और यहांसे वे थोडा ही आगे और बढे होंगे कि एक जोरकी आंधी आई, उसने उनके छत्रको तोड डाला, घर जाकर अपने पुत्र देवरतिको "बुलाकर कहा-बेटा ! मेरे कोई ऐसा ही पाप कर्मका उदय
आवेगा जिससे मरकर मैं अपने पाखाने में पांच रंगका एक कीडा होऊंगा सो तुम उस समय मुझे मार डालना। इस लिये कि मैं फिर कोई. दूसरी अच्छी गतिः प्राप्त कर सकुं । विष्टा और छत्र मंगकी बातें देखनेसे. राजा. शुभको: