________________
तृतीय भाग। दांतन न करना १७, खडे आहार लेना १८, इस प्रकारसे ये १८ मूल गुण सर्व सामान्य मुनियोंके अर्याद आचार्य उपाध्यायादि समस्त साधुओंके होते हैं। मुनिजन इनका पालन करते हैं ॥ ३० ॥
१२. दर्शन प्रतिज्ञाकी कहानी।
किसी समय एक नगरमें एक प्रमादी शेठ रहता था। उस शहर में रहनेवाले पंडितों व त्यागी महात्माओंने कितनी ही दार उपदेश दिया कि तुम भगवानके नित्य दर्शन करनेकी आखडी ले लो परन्तु उसने आखडी नहीं ली. वह कहता कि मैंने आखडो ले ली और कोई दिन दर्शन करना भूलगया या मंदिर दूर है किसी दिन प्रमाद भा गया तो दर्शन नहि करनेसे आखडी भंग हो जायगो पाखी भंगका वडा पाप है इसलिये आखडी तो मैं किसी भी तरह की लेता नहीं, हां ! आपकी आज्ञाका जहांतक बना पालन करूंगा परंतु वह सेठ दो चार दिन तो मंदिरजी जाता फिर प्रमाद कर जाता । अर्थात दर्शन करना छोड देता ।
एक दिन एक ब्रह्मचारीजी महाराज आये सबकी देखा देखी सेठने भी उनको निमंत्रण दे दिया और ब्रह्मचारीजी को अपने घर पर नीमनेको ले तो गये परंतु उन ब्रह्मचारी जी महाराजका नियम था कि वे निमंत्रण करनेवाले गृह