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जैनवालवोधक
पांच समिति । ईर्या भाषा एषणा, पुनि क्षेपण अादान । प्रतिष्ठापना जुत क्रिया, पांचों समिति विधान ॥ २८ ॥
ईर्या समिति ( आलस्य रहित चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना) १, भाषा समिति (हित मित प्रिय वचन बोलना)२, एषणा समिति (दिनमें एकवार शुद्ध निर्दोष आहार लेना ) ३, आदाननिक्षेपण समिति ( अपने पास के शास्त्र, पीछी, कमंडलु आदिको भूमि देखकर सावधानीसे धरना वा उठाना)४, प्रतिष्ठापनसमिति ( जीव जन्तुरहित साफ जमीन देखकरमल मूत्रादि क्षेपण करना) ५, ये पांच समिति हैं ॥ २८ ॥
शेष गुण दोहा। सपरस रसना नासिका, नयन श्रोत्रका रोध । पट भावशि मंजन तजन, शयन भूमिका शोध ॥ २९ ॥ वस्त्र त्याग कच लुच अरु लघु भोजन इक बार। दाँतप्प मुखमें ना करें, ठाडे लेहि अहार ॥ ३०॥
स्पर्श १, रसना २, घ्राण ३ चक्षु४, श्रोत्र५,इन पांचों इंद्रियोंको वशमें काना, समता ६, वंदना ७, सुति ८, प्रतिक्रमण ९, स्वाध्याय १०, कायोत्सर्ग ११, स्नानका स्याग १२, स्वच्छ भूमि पर सोना १३, वस्त्र त्याग १४, केश लोच करना १५, एक बार बडे भोजन करना १६,