________________
सूचना ।
विदित हो कि मैने जैनवालबोधकके चार भाग बनानेकी इच्छा की थी किन्तु प्रमादसे अमीतक पूर्ति नहिं कर पाया । अर्थात् प्रथम भाग वी. नि. संवत् २४२६ शालमें बनाया था। द्वितीय भाग वीर नि० से २४३३ में और संशोधित द्वितीयभाग १० वर्पवाद चीरनि० सं. २४४३.में प्रकाशित किया इससे ४ वर्ष बाद अब यह तृतीय भाग लिख पाया हूं उम्मेद है कि चतुर्थभाग भी इसी वर्षमें लिख सकूँगा।
इस भाग पाठोंकी सूची देखने वा 'आद्योपति पदनेसे आपको मालुम होगा कि इसके प्रत्येक पाठमें जैनधर्मकी शिक्षा व साधारण नीति. ज्ञान यथाशक्ति भरा गया है । कारण इसका यह है कि-आजकाल प्रारंभ हीमें जैन धर्मकी शिक्षा न मिलने से व पाश्चात्य विद्याकी प्रचुरतासे अंगरेजी पढनेवाले जैनी लड़कों के चित्तौसे जैनधर्मसंबंधी सदाचार और महत्वका अंश क्रमशः निकलता जाता है। जिसका फल यह देखा जाता है-हमारे अनेक जैनी भाई प्रेजुयेट होनेपर जैनधर्मसे सर्वथा अनभिज्ञ होने के कारण जैन धर्मका एक दम लोट फेर करके एक नवीन ही संस्कार कर देनेमें कटिबद्ध हो गये हैं । भविष्यतमें भी यदि प्रारभसे ही जैनधर्मकी शिक्षा नहि मिलैंगी तो सब बालक प्रायः इस 'सनातन पवित्र जैन धर्मसे अन'भिक तैयार होनेटे इस जैनधर्मका शीघ्र ही हांस हो जायगा इस कारण, समस्त जैनी बालकोंको प्रारंभसे ही जैनधर्मकी और सदाचारताको शिक्षा देने के लिये जैनधर्मसंबंधी.पाठोंकी ही बहुलता रक्खी गई है! .. .... :::..(कवरके दूसरे पृष्ठमें देखो):