________________
नृताय भाग ।
२४५
३ ! पांच उबर फलों का त्याग और मद्य मांस मधु का व्यागकर देना सो जघन्य प्रकारके आठ मूलगुण हैं । इन तीन प्रकारके मूल गुणों में जो उत्तम प्रकारके मूळ गुण धारण करेगा सो उत्कृष्ट दर्जेका दर्शनिक ( दर्शन प्रतिमाधारी ) कहलावेगा और मध्यम प्रकारके मूलगुण पा
नेत्राला मध्यम प्रकारका दर्शनिक ( दर्शन प्रतिमाधारी ) और जघन्य मूलगुणों का धारक जघन्य दर्शनिक कहलावेगा ।
२ । व्रत प्रतिमा - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रतोंको निरतिचार पालना सो दूसरी व्रतप्रतिमा है । ३ । सामयिक प्रतिमा- प्रातःकाल मध्यान्हकाल और सायंकालमें छह घडी या ४ चार घडी वा दोय घडी निरतिचार सामायिक करना सो तीसरी सामयिक प्रतिमा है ।
४ । प्रोषव प्रतिमा- प्रत्येक सप्तमी त्रयोदशी के दिन प्रातःकाल ही सामायिक पूजा वगेरह करके दुपहरको भोजन करके मध्यान्हकालका सामायिक करके १६ पहर तक चार प्रकारके आहारोंका त्याग करके शेषके दोपहर दिन व रात्रि के ४ पर धर्मध्यानमें बिताये तथा अष्टमी चतुर्दशीके दिन के ४ पहर और रात्रिके चार पहर और नवमी पूर्णमासी के वा अमावस्या के दो पहर तक सामायिक पूजा बन्दनादि करके एकवार आहार ग्रहण करे इस तरह १६ पहर धर्म - ध्यानमेंही आरंभ छोडकर बिताये ऐसे प्रोपधपूर्वक उपवास को निरतिचार करते रहना सो प्रोषध प्रतिश है ।