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जनवालबोधक
१ । दर्शनप्रतिमा | इस प्रतिमा कक्षा ) में रहनेवाले मनुष्यको २५ दोषरहित शुद्ध सम्यग्दर्शन और आठ मूल गुण धारण करने पड़ते हैं।
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पच्चीस दोष- शंका, कांक्षा, चिचिकित्मा, ( द्वेषरूप ग्लानि ) मूढदृष्टित्व, अनुषगूहन, अस्थितिकरण, अत्रात्सल्य, और प्रभावना ये आठ दोष और आठ पद तीन मूढता (देव मृढता, गुरुमूढता, लोकमूढता, ) और छह अनायतन इ प्रकार २५ दोष हैं । कुदेव, कुशास्त्र, और कुगुरु तथा इन तीनोंको माननेवाले तीन, इस प्रकार ६ आनयतन हैं इनको अच्छा समझना वा सेवा पूजादि करना सो दोष है । इन पच्चीस दोषोंको छोडने से सम्यग्दर्शन शुद्ध होता है । आठ मूलगुण- उत्तम मध्यम जघन्यके भेदसे तीन प्रकार के कहे गये हैं ।
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१ । स हिंसाका त्याग १ स्थूल झूठका त्याग २ स्थूल चौरीका स्थाग ३ परखीका त्याग ४ परिग्रहका परिमाण करना ५ मद्यपानका त्याग ६ पांस भक्षणका त्याग ७ मौर और मधु खानेका त्याग ८ ये आठ मूलगुण उसम प्रकार के हैं । २ | मध्यम प्रकार के भाठमूल गुम-पद्यका त्याग १ मांसका त्याग २ मधुका त्याग ३ रात्रिमें भोजन करनेका त्याग ४ पांच उदंबर फलोंका त्याग ५ पांच परमेष्ठीको त्रिकाल वन्दना करना ६ जीवदया पालन ७ और जळ छान कर पीना. ये आठ मध्यम प्रकारके मूलगुण हैं |