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________________ २३३ तृतीय भाग। उनने उस दिनसे ग्रामीण राजामों द्वारा भेटमें आई हुई चीजोंको मेपिंगल और अपनी उपभसेना रानीको आया २ देनेको कह दिया । भाग्यसे उसी समय दो रत्नकम्बल आ गए। राजा उग्रसेनने उनमेंसे एक तो मेघपिंगलको दे दिया जिस पर उसका नाम अंकिन था और दूसरा वृष. भसेनाका नाम डालकर उपभसेनाको सोंप दिया। एक समय कारणवश मेघपिंगलको रानी उस कम्बलको ओढकर वृषभसेनाके घर गई और वहां पर उसका कंवल बदले पड गया और उसको ओढकर अपने घर चली आई। मेपिंगल भी उसी वदले हुये कंवलको श्रोढकर राजा उग्रसेनसे मिलने माया । राजाको कृपभसेनाका कंवल मेघपिंगलके पास देख कर कुछ संदेहसा पैदा हो गया और मुख भी गुस्सामय कर लिया। उग्रसेन राजाको कोचित्त देखकर लौट आया और यह विचार कर कि राजा मुझपर नाराज है दूरदेश चला गया। जब उग्रसेन महलमें गये और गनीके पास मेघपिंगलका कंवल देखा तो अब वह खूब गुस्सा हो गया ओर यह निश्चय करके कि वृपभसेनाका पाचरण खराब है उसी समय राजाने पथसेनाको मारनेके लिये समुद्रजल में फिकवा दिया परंतु वृषभसेनाने प्रतिज्ञा करली थी कियदि में इस उपसर्गको सहन कर लूंगी तो खूप तपश्चरण करूंगी। इसके शील माहात्म्यसे ऐसा ही हुवा कि जलदेवता. ऑने पाकर पानीमें सिंहासन रच दिया, जिसके पास
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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