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जैनबालवोधकशिष्य-ठीक है, गुरुजी हपलोगोंका मन भी इस घृणित चर्चासे दुःखित हो गया है (प्रणाम)!
*08-0-8 ६४. श्मश्रुनवनीतकी कथा ॥
अयोध्यामें भवदत्त सेठ रहते थे जिनकी स्त्रीका नाम धनदसा और पुत्रका नाम लुब्धदत्त था । वह एक समय व्यापारकेलिये परदेश गया और वहां बहुत धन कमाकर लौट आया परन्तु भस्तेमें चोरोंने लूट लिया । बेचारा वहांसे चल दिया और एक गोपालके मकान पर आया जो रास्ते ही में या। उसने ग्वालासे कुछ महातक मांगा, उसकी याचना सफल हुई किंतु उस पठेमें ऊपर थोडा सा घी उतरा रहा था उसे देखकर उसने विचार किया कि यदि मैं यहां थोडे दिन ठहरूं और प्रतिदिन मट्ठा लेकर उसका घी निकाल लिया करूं तो कुछ न कुछ इकट्ठा हो जायगा जिससे मैं पुनः व्यापार कर सकूँगा ऐसा विचार कर वहीं रहने लगा और वैसा करना शुरू कर दिया। लोगोंने ऐसा देख कर इसका नाम कमश्रुनवनीत रख दिया । थोडे दिनमें उसके पास एक. प्रस्थममाण घी हो गया जिसे पांत्रमें भरकर जहां सोता था पैरोंके अन्तमें रख लिया और ठंडके कारण पासमें ही अग्नि. जलाकर लेट गया और विचार करने लगा कि इस घी को.