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तृतीय भाग!
२१६ निलामीपन क्षमाशक्ति त्यों, बान भक्ति श्रद्धा संतोष ।। . निर्मल दाताके गुण हैं ये. धारो इनको तनकर दोप ॥८६॥
जिनके कूटने, पीसने, चूला सुलगाने, पानी भरने, और बुहारी देने रूप पंच सूनाके प्रारंयका त्याग, है उन मुनियोंको, नवधा भक्तिपूर्वक सप्त गुणधारक श्रावकके द्वारा आदरपूर्वक आहार आदि दान देना सो दान कहाता है । पडगाहना, उच्चस्यान देना, दोदकको मस्तक पर लगाना, पूजा करना, प्रणाम करना, मन वचन कायकी शुद्धि रखना
और एषणा शुद्धि अर्थात् शुद्ध आहार देना सो नवधा भक्ति है। श्रद्धा, संतोप, भक्ति, ज्ञान, निलोपता, क्षमा, और दान देनेकी शक्ति ये दातागके सात गुण हैं । इन गुणों सहित दातारही प्रशंसाके योग्य है।॥८६॥
दानका फल। जिसने घर धर्मार्थ तजा, उस, अतिथीकी पूजा करना। घर धंदेसे बढे हुये, पापोंका है सचमुच हरना ।। मुनिको नमनेसे ऊंचा कुल, रूप भक्तिसे मिलता है। मान दास्यसे, मोगदानसे, श्रुतिसे शुचि यश बढता है ।।
गृहरहित अतिथियोंको नवधा भक्तिपूर्वक आहार दान देना निश्चयसे गृहसंबन्धी भारंभोंके संचित पापोंको नष्ट करनेवाला है तथा ऐसे अतिथियों को नमस्कार करनेसे ऊंचा कुल, दान देनेसे भोग, भक्ति करनेसे सुंदर रूप सेवा करने से मान प्रतिष्ठा और स्तुति करनेसे कीर्ति यश प्राप्त होता है।