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तृतीय भाग ।
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अंजन मंजन न्हाना धोना, गंध पुष्प सजधज करना । आरंभ पांच पार हिंसादिक, इस दिन बिलकुल परिहरना ॥
उमेश अष्टमी चतुर्दशी के दिन चार प्रकारके आहार को छोड देने को उपवास कहते हैं परन्तु पहिले रोज और पारनाके दिन एकासन करके १६ पहरका उपवास करना सो प्रोषधोपवास है । प्रोषधोपवासके दिन पांचों पापोंका,-- और शृंगार, आरंभ, गंध पुग्ध, स्नान अंजन मंजनका सर्वथा त्याग करके १६ पहर तक ज्ञानध्यान स्वाध्यायमें तत्पर " रहना चाहिए ॥ ८२ ॥
प्रोषधादिका मेद |
तजना चारों आहारोंका, होय निराकुल है उपवास | एकवार खानेको मोषय, कहते हैं जो प्रभुपददास || दो मोषधके विचमें करना, एक आशना कहलाता | प्रोपधोपवास है पूरा, भव्य जनोंको सुखदाता ॥ ३ ॥
खाद्य साथ लेद्य पेय इन चारों आहारोंका त्याग करना-सा तो उपवास है और एक ही वक्त खाना सो प्रोषध( एकाशना ) है, और दो प्रोषधोंके वीचमें ( अष्टमी चतुदशीको ) एक उपवास करना सो प्रोषधोपवास है ॥ ८३॥
प्रोषधोपवासके पांच अतीचार |
देखे माले बिन चीजोंका, लेना मलादि तज देना । और विछाना विस्तरका त्यों, व्रत कर्तव्य झुला देनाः ॥..