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'तृतीय भाग ।
पुराना गुड आदि, जमीन में गढे हुये मटकोंमें पानी के साथ डालकर महीनों तक सढाये जाते हैं। जब उसमें सर्दी के प्रभावसे सडकर असंख्य कीडे पड जाते हैं तब उन सब कीडों और बेरीके जड वगेरहका भर्क भट्टी चढाकर यंत्र द्वारा निकाल लिया जाता है फिर ठंडा करके बोतलोंमें भर भर कर उसे बेचते हैं। जब वह मद्य ठंडा हो जाता है तबसे उसमें असंख्य सूक्ष्म कीडे पडने शुरू हो जाते हैं । यदि तुम सूक्ष्मदर्शक यंत्रसे ( माइस्कोप (से) देखोगे तो शरराव सर्वथा कीडोंकी राशि (खान) संमझोगे । इस प्रकार असंख्य जीवोंसे भरी हुई दुर्गंधमय मंदिरा को लोग पीते हैं उनको इन सब जीवोंकी हिंसाका महा : पाप लगता है और उनको मद्यपी, शराबी कहते हैं । मदिरामें नशा बहुत होता है जिसके पीनेसें मनुष्य अपनी सब शुत्र बुध विमर जाता है और उसको का ज्ञान न होने से वह धर्मसे च्युत होकर हिंसा चौरी झूठ कुशील सेवनादि पापोंमें लग जाता है । सदाचरणको विलकुल भूल जाता है फिर वह मानसिक शक्तियोंके नष्ट 'होनेसे प्रतिदिन के कार्य करनेमें भी असमर्थ हो रोगी हो जाता है । जिससे दिनोंदिन उसकी आयु घटती जाती हैं
परका वा हिताहित
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असदाचारी होने से दुनियांमें उसका विश्वास व मान मर्यादा सब घट जाती है । तब उसके पास कोई भी भला मनुष्य जहि आता । जो वह शरावी धनाढ्य होता है तौ ठग लोग
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