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________________ तृतीय भाग। २०१ तुम्हारी और तुमारे देशकी उन्नति हो तो कैसे हो ? क्योंकि तुम तो अपने वार दादोंको यानी महर्षियोंकी बताई हुई प्राचीन विद्या, नीति चतुराईको छोडकर समस्त आचार व्यवहार नष्ट करनेवाली थोडीसी अंगरेजी विद्या पढकर अपने पूज्य ऋषियोंके (वापदादोंके ) चलाये हुये सर्वोत्तम रीति रिवाजोंको (धर्मको) जडमूलसे हटाकर काले काले कोट बृट पतलून पहन कर रीछोंकी सी मुरत बना लेना, बूट पहन कर कुरसी पर बैठकर टेबल पर भोजन करना, विवाह शादी परदा जातिभेदको मिटाकर विधवाविवाह श्रादिक सत्यानासी विचारोंका प्रचार करना, शूद्रोंके साथ भोजन करना, वेटी व्यवहार करना आदि कुरीतियोंके प्रचारमें लग गये। अपने पूज्य ऋषि मुनियोंके वचनों और ग्रन्थों का खंडन करके अंगरेजोंके बताये हुये कुरीतियोंको ही नकल करनेमें देशोन्नति व जात्युन्नति समझने लगे हो। ___यारे लडको ! जरा हृदयके नेत्र खोल कर अपने वाप दादोंके लक्षावधि उपदेशी ग्रंथों के वचनों से कुछ वचनोंका तौ पालन करो उन्होंने तुमारे लिये ही उपदेश देनेवाले लाखों ग्रंथ बनाये थे और अब भी वे रक्खे हुये हैं उनका अनादर वा खंडन मत करो, एकदम कृतघ्नी भूख न बनो बहुत नहिं मानो तौ न सही, किंतु नीचे लिखे एक वाल्यको तौ आज अवश्य ही मान लो। देखो-इस वाक्यमें तुमारे लिये कैसा उत्तम उपदेश दिया है
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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