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जैनबालबोधक
"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" अर्थात् माता और अपनी जन्मभूमि स्वर्गसे भी श्रेष्ठ ( अधिक) सुखदायक है सो तुमने तो अपने वढोंके इन अमूल्य वचनोंका कुछ भी आदर व पालन नहि किया और विदेशियोंने तुपारे वडोंके इस वचनको सत्य करके दिखला दिया । क्योंकि वर्तमान में क्या व्यापार, क्या शिल्प, क्या नीति, क्या राज्य, क्या शोभा, क्या मान, क्या धन जिस विषय में देखो उसी विषय में अंगरेजों को सबसे उन्नत वढा चढा देखते हो सो क्या उनके शरीर में हाय पात्र नाक कान तुमारे शरीर से दुगणे चौगुणे हैं, क्या विधाताने ( कर्मने ) उन्ही को विद्या बुद्धि वा ज्ञान दिया है । तुमारेमें क्या विद्या बुद्धिका अभाव है ? क्या तुम भी उनकी देखा देखी उपाय करो तो किसी बात में कम हो, जो उन्नत नहि हो सकते ? परन्तु खेद यही है कि तुमने प्रमाद और मूर्खताके कारण हिम्मत और परिश्रम करना छोड दिया है !
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अरे भाइयो ! जरा अंगरेजों के प्राचीन इतिहासको तो देखो कि वे लोग दोसौ वर्ष पहले कैसे ये १ आलु मांसके खाने वाले निरे जंगली असभ्य थे कि नहीं ? फिर तुमारे हृदय की फूट गई कि उन्होंने तुमारे देखते किस नीति और चतुराईके साथ तुम लोगोंको दीन गुलाम बनाते हुए पृथ्वी भरमें
पना प्रभाव, धनमान प्रतिष्ठाका विस्तार किया और अपनी जन्मभूमिको स्वर्ग से भी श्रेष्ठ बना लिया । ..