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जैनवालवोधक
साधु
अपने स्थानको जाने लगे तो एक साधुका जूता नहीं । बहुत तलास करने पर नीलीने कहा- महाराज आप तो निमित्तज्ञानी हैं अपने शास्त्रसे पता लगा लीजिए । मेरे श्वसुर तो I जिस धर्मपर मुझे लाना चाहते हैं इसकी वडी प्रशंसा करते हैं परंतु आप तो अपनी जूतीको पेटमें रक्खे हुए भी पता नहीं लगा सक्ते । नीली के ऐसे वचन सुनते ही माधु बहुत घबड़ाए और इस वातकी परीक्षा के लिये एक साधुने वपन कर दिया । नीलीने जो कहा था वह बिलकुल सत्य निकला उस चमनमें कई छोटे २ टुकडे जूतीके दिखाई देते थे । विचारे साधु बहुत लज्जित होकर अपने स्थानको चले गए, किंतु घरके सब लोग नीली पर बहुत कुपित हुए और कहने लगे - तू वडी पापिनी है। सागरदत्तकी वहिनने तो यहांतक किया कि इसे कुशीलका दोष लगाकर सब जगह बदनाम कर दिया | विचारी नीली इस दोषका छुटकारा पानेके लिए मंदिरमें गई और भगवानके सामने कायोत्सर्गसे स्थिर हो कर कहने लगी कि जबतक मेरा यह अपवाद न हटेगा अन्न जलका सर्वथा त्याग है, इसके महा तपसे नगरदेवता चुभित होकर रात्रिको नीली के पास श्राया और कहने लगादेवि ! इसतरह आप अपने प्राणोंका त्याग न कीजिये । में 1 यहांके राजा व मंत्रियोंको स्वप्न द्वारा जताए देता हूं किनगरके दरवाजोंके किवाड किसी शीलव्रता स्त्रीके अंगूठे से खुलेंगे अन्यथा नहीं, ऐसा कहकर वह देव चला गया और