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________________ १६७ तृतीय भाग। वह पुत्री तुम्हीको मिल सके ! उसने ऊपरी जैनी बनना शुरू किया और इतना दिखावटी जैनी वन गया कि सब लोग उसे सचा जैनी कहने लगे । अब क्या था यह बात जिनदत्त तक भी पहुंची और इसलिये उसने समुद्रदत्तके कानेपर अपनी लडकीका विवाह सागरदचके साथ कर दिया । विवाह करते देरी न हुई थी कि समुद्रदत्तने अपना वनावटो वेष बदल दिया और पूर्वकी तरह बौद्धधर्म पालने लगा और नीलीका पिताके यहा जाना विल्कुल. चंद कर दिया । जब यह खबर जिनदत्तने सुनी तो अपने भनमें बहुत पछताया और विचारने लगा कि इससे नीली का मरण होता तो भी अच्छा था परंतु अव जिनदत्तके सब विचार व्यर्थ ही थे। परंतु नीली वडी धर्मात्मा थी इस लिए वह वहां पातिव्रत्य धर्षसे रहती हुई अपने कालको धर्म में विताने लगी और उसने किसी तरह भी चौद्धधर्षे धारण न किया । जब घरके सव आदमी नीलीको बौद्धधर्मकी तरफ लगानेमें असमर्थ हो गए तब समुद्रदचने दौद्धसाधुवोंका व अपना प्रयत्न शायद सफल होजाय यह समझकर उन साधुवोंका एक दिन निमंत्रण कर दिया और नीलीसे रसोई बनानेको कहा। नीलीने श्वसुरकी आज्ञाको मानकर नाना प्रकारके मिष्टान्न बनाना शुरू कर दिया। जब साधु जीमनेको आए तबधीरेसे नीली साधुका एक जूता उठा लाई और छोटे टुकडे करके उसी भोजनमें मिलाकर सबको खिला दिया.जब
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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