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जैन बालबोधकं
आपको चतुर जाने औग्न को
सांझ होन आई है विचारत सवेर ही ||
मूढ मानें,
चापहीके चखन चित araौं न चौंध कर चावान तीन
सकल चाल, राख्यो है अंधेरही । नकही ऐसो जम,
दीख है मसान थान हाडनके ढेरही || ६ || केवी वार स्वान सिंघ यांवर सिपाल सांप, सिंधुरं सारंग मुस सुरी उदरें परयो । केतीबार चील चगोदर चकोर चिरा,
चक्रवाक चातक चंदुल तन भी घरयो ॥ केतीबार कच्छ मच्छ मेंहक गिडोला मीन,
शंख सीप कौडी है जलूकी नलमें तिरयो । 'कोड कहें 'जाय रे जिनावर ' तो बुरो मानै
यौं न मूढ जाने मैं अश्वार हैं मरयो ॥ ७ ॥
दुष्टकथन छप्पय ।
करि गुण अमृत पान, दोष विष विषम समप्यै । वक्रचाल नहि त, जुगले जिहा मुख थप्पै ॥
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देखे । २ चलावै । ३ बाण सर । ४ तानकर । ५ बारहसींगा ।
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६ हाथी । ७ मोर । ८ खर्गोस । ९ शकरी । १० चिडिया | ११ जोंक । १२ समर्पण करै अथात उगले । १३ सपिके दोजीमें होती है, दुष्ट द्वि जिह्वा अर्थात् चुगल होता है ।