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तृतीय भाग ।
४. सप्त व्यसन ।
व्यसन नाम किसी विषय में अहोरात्र मन ( लवलीन ) रहने का है । मन भी ऐसा रहै जिसका दूसरे विषयोंकी तरफ ध्यान ही न रहै | इस प्रकारसे यदि खोटे कार्यों में मग्न रहै तौ उन्हें कुम्पसन कहते हैं । परंतु अच्छे कार्यों में आजकल बहुत कम लवलीन होते हैं इस कारण प्रचलित भाषामें कुव्यसनको व्यसन शब्दसेही उच्चारण करते वा समझते हैं । ऐसे कुव्यसन सात हैं । जैसे, जुआ खेलना १, मांस खाना २, मदिरा पान करना ३, शिकार खेलना ४, वेश्या गपन ५, परस्त्री सेवन ६, और चोरी करना ७, ये सात व्यसन ( कुव्यसन ) है |
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१ | रुपये पैसे और कौडियों वगैरह से मूठ खेलना तथा हार जीत पर दृष्टि रखते हुये शर्च लगाकर कोई भी काम करना अफीम नीलाम के प्रांक पर सर्च लगाना व रुपये रखना सो जूआ कहलाता है। जुआ खेलनेवालेको जुवारी कहते हैं । जुवारी लोगोंका कोई विश्वास नहिंकरता क्योंकि जूएमें हार होनेसे चोरी बेईमानी करनी पडती है । जुनारीका सब जगह अपमान होता है । जातिके लोग उसकी निंदा करते हैं और राजा दंड देता है । तासगंजफा खेलना भी जूएमें समझना चाहिये ।
२ | जंगम [ त्रस ] जीवोंको मारकर अथवा मरे हुये :