________________
१७४ .
जैनबालवोधकमन वचन काय कृत कारित अनुमोदनासे पांचों पापोंका सर्वथा त्याग कर देनेको पंच महाव्रत कहते हैं ॥५६ ।।
दिग्वतके पांच अतीचार । दशों दिशाकी जो मर्यादा, को हो उसे न रखना याद । भूलभाल उसको तज देना, या तज देना धार प्रमाद ॥ ऊंचे नीचे आगे पोछे, अलग वगल मित्रो बढना । दिव्रतके अतिचार कहाते, याद न मर्यादा रखना ॥६॥
अज्ञान वा प्रमादसे उपरकी १ नीचेकी २ तथा विदिशाओंकी मर्यादाका उल्लंघन करना ३ क्षेत्रकी मर्यादा वढा लेना ४ की हुई मर्यादाओंको भूल जाना ये पांच दिव्रतके अतीचार माने गए हैं। ६० ॥ .
. . अनर्थ दंड विरति । दिग मर्यादा जो की होवे, उसके भीतर भी विनकाम । पापयोगसे विरक्त होना, है अनर्थ दण्डवत नाम ॥ . हिंसादान प्रमादचर्या, पापादेश कयन अपध्यान । त्यों ही दुःश्रुति पांचों ही ये, इस व्रतके हैं भेद सुजान ॥६१॥
दिव्रतमें की हुई मर्यादाके भीतर भी विनाप्रयोजन पाप के कारणोंसे विरक्त होना सो अनर्थदण्डविरति व्रत है । इसके हिंसादान, प्रमादचर्या, पापोपदेश, अपध्यान और दुःश्रुति ये पांच भेद हैं ॥६॥
हिंसादान बनय दंग। . . कुरी कटारी खडग खुनीता, अग्न्यायुष फरसा तलवार !