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तृतीय भाग ।
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परिग्रह परिमाण व्रत और पापमें प्रसिद्ध होनेवालोंका नाम व गृहस्थ के
अष्टमूल गुण ।
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जयकुमारने इस वर व्रतको पालन करके सुख पाया । 'वैश्य 'मूळ मक्खन' नहि पाला 'हाय द्रव्य' कर दुख पाया || पांच अणुव्रत कहे इन्ही में, मद्य मांस मधुका जो त्यागः । मिल जावै तौ आठ मूलगुण, हो जाते हैं गृही-सुहाग |
जयकुमारने इस परिग्रहपरिमाण व्रतको पालन कर सुख पाया है और मूल मक्खन नामके लुब्धक वैश्यने अति - लोभ करके इस व्रत पालने में दुःख उठाया है ।
इन पांचों अणुव्रतोंको धारण करने और यद्य मांस - मधु इन तीन श्रभक्ष्योंका त्याग करनेसे श्रावकके आठ मूल - गुण हो जाते हैं ॥ ५५ ॥
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४४. यमपालनामा चंडालकी कथा |
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पूर्वकालमें सुरम्य नामके देशमें पोदनपुर नापका नगर था. उसका राजा महाबल था. उसो नगरमें एक यमपाळ - नामका चंडाल रहता था. जीवोंको हिंसा करना ही उसका - रोजगार था ।
एकदिन उस चंडालको सर्पने काट खाया सो उसे परा जान उसके कुटुंबियोंने दग्ध करनेको नगरसे दूर श्मशान भूमिमें लाकर रक्खा था. उसी जगहें सर्वोपधिद्धिके धारक