________________
तृतीय भाग।
अहिंशाणुव्रत। 'तीन योग में तीन करणसे, पजीवोंका वध नजना। कहा अहिंसाणुव्रत जाता, इसको नित पालन करना । इसी अहिंशाणुव्रतके हैं, कहलाने पंचालीवार । छेदन भेदन भोज्य निवारण, पोडन बहुत लादना भार ।। , न वचन काय और कृत कारित अनुमोदनासे प जीवोंकी हिंसाका त्याग करना सो यहिंसाणुव्रत है और किसी जीवका छेदन, भेदन, आहार बंद करना, पीडा देना और बहुत भार लादना येणंच इस व्रतके भतीचार है ।।
अहिंसाणुव्रत और हिंसामें प्रसिद्ध होनेवालोंका नाम । इसी अणुव्रतके पालनसे, जाति पांतिका था चंडाल। जैमी सब प्रकार सुख पारा. कीर्तिमान् होकर यमपाल । नहीं पालनेसे इस व्रतके, हिंमारत हो सेठानी। हुई धनश्री ऐसी जिमुकी, दुर्गति नहिं आती जानी॥४७॥
इस अहिंसाणुव्रतके पालनेमें यमपाल नामका चांडाल मसिद्ध हुवा है और इस चूरको न पालकर हिंसाम रव हो कर धनश्री नामकी सेठानी दुर्गतिकी पात्र हुई है ।। ४७ ॥
__ सत्याणुव्रत । बोलै झूट न झूठ बुलाये, कहै न सच भी दुखकारी। 'स्थल झूठसे विरक्त होवे, है सत्याणुवून पारी ।। निंदा करना धरोह हरना, कूट लेख लिखना परिवाद । गुप्त वातको जाहिर करना, ये इसके अतिचार प्रमाद ।।