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जैनवालवोधकये खाद्य पदार्थ दूषित न हों, ऐसा उपाय करना चाहिये। जिस घर में रसोई बने यह साफ सुथरा होना चाहिये। भास पासमें दुर्गधका नाम निसान तक नहीं होना चाहिये परंतु सबसे अधिक इस नियम पर ध्यान रखना चाहिये कि दोबार थोडा थोडा खाना अच्छा है परंतु एक बारमें भूखसे अधिक खालेना अच्छा नही तथा विना भूखके कभी नहि खाना चाहिये। यदि इस बातपर ध्यान रखोगे तो तुम बहुतसे रोगों से बचे रहोगे।
३२. उदायन राजाकी कथा। कच्छ देशमें रौरव नामका नगर या । उसके राना उहायन सम्पष्टि बडे धर्मात्मा और दानी थे, उनकी रानी का नाम प्रभावी था। वह भी सतीधर्मात्मा पवित्र मनवाली थी। वह भी अपने समयको प्राय: दान, पूजा, व्रत, उपवास स्वाध्यायादिकमें विताया करती थी।
एक दिन सौधर्म स्वर्गके इन्द्रने अपनी सभामें धर्मोपदेश करते समय सम्यग्दर्शन और उसके आठ अंगोंका वर्णन विस्तारसे करते समय निर्विचिकित्सा अंग पालन करने रालोंमें उद्दायन राजाकी बडी प्रशंसा की। इंद्रके मुखसे एक मध्य लोकके मनुष्यकी प्रशंसा सुनकर वासव-नामका देव उसी समय मध्य लोकमें पाया और मुनिका वेश बनाकर आंहारके समय उहायनके महलपर गया।