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________________ जैनवालवोधक. पार्श्वनाथस्तुति । छप्पय सिंहावलोकन । जनम-जलधि जलजान, जान जन-हंस-मानसर । सरव इन्द्र मिल पान, प्रान जिस धरहिं सीसपर ॥ पर उपकारी बान, वार्न उत्थपइ कुनय-न । गेन-सरोजयन-भान, भानं मम मोह-तिमिर-धन ।। धन वरन-देह दुखदाह-हर, हरखत हेर मयुर-मन । ' मन्मथ-मतंग-हरि पास जिन, जिन विसरहु छिन जगतजन ।। . वर्द्धमान जिनस्तुति। ___दोहा । दिढ कर्माचल दलपवि, भाव सरोज रविराय । कंचन छवि कर जोर कवि, नमत वीर जिन-पाय ॥ ६ ॥ ___सवैया ३१ मात्रा। रहौ दूर अंतरकी महिमा, वाहिन गुन बानन बल कापै । एक हजार आठ लच्छन तेन, तेन कोटि रविकिरनि उथापै ।। १ संसार समुद्र तरनेको जहाजके समान । २ भव्य रूपी इसको मान सरोवर । ३ आकरके । ४ माज्ञा । ५ स्वभाव ६ वानी ७ उखाड देती है। ८ खोटे नयोंको नयाभासोंको । ९ गण ( मुनिमंडल) रूपी कमल बनको. प्रफुल्लित करने केलिये १० नाश कीजिये । ११ वादलके समान नील रंग वाला देह । १२ पार्श्वनाथ भगवान । १३ मत भूलो।१४ कर्मरूपी. मजबूत पर्वतको नष्ट करने के लिए वज्रके समान १५ भव्यरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेके लिए सूर्य । १६ वीर भगवानके चरन । १७ बाहिरी गुण क्यान करनेकी शक्ति किसमें है । १८ शरीरका तेज।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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