SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय भाग। तिहुँ जग छई चंद्रिका कीरति, चिहनचंद्र चिंतत शिवगामी।। चंदौं चतुरंचकोरचन्द्रमा, चंद्रवरन चन्द्रप्रभ स्वामी ॥ २ ॥ शांतिनाथ स्तुति । मत्तगयंद सवैया।। शांतिजिनेश जयौ जगतेश, हरै अघताप निशेशकी नाईं। सेक्तपाय सुरासुरराय, नमै सिरनाय महीतल ताई ।। मौलि लगे मनिनील दिपै, प्रभुके चरनौं मलकै वह माई। सूधन पाय-सरोज-सुगंधि, कियों चलि ये अलिकति आई।। नमिजिनस्तुति । कवित्त मनहर ३१ वर्ण । शोभित प्रियंग-अंग देखे दुख होय मंग, लाजत अनंग जों दीप भानुभासते। चालब्रह्मचारी उग्रसेनकी कुमारी जादो, नार्थ ते निकारी जन्मकोंदौ-दुखरासत ।। भीमभक्काननमें आन न सहाय स्वामी, अहो नेमिनामी तकि भायो तुम तासतें। जैसे कृपाकंद वनजीवनकी वन्द छोरी, स्यों ही दासकोखलाम कीजे भव पासते ॥४॥ , ५ चन्द्रमाका है चिह्न जिनके ६ । बुद्धिमान पुरुषरूपी चकोरोंको चंद्रमाके समान । ७ चन्द्रमाके समान ! ८ मुकुटमें। ९ छाया । १० चरंण कमलोंकी सुगंधि । ११ प्रियंगुके (कंगनीके) फलके समान श्यामवर्ण है अंग जिनका । १२ हे जादवनाथ १३ दुःखमयी जन्म मरणरूप कीचसे। २४ मुफ या रहित।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy