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________________ तृतीय भाग। नहि भासकते । इसकारण अणुवीक्षण यंत्रद्वारा भी परमा. गुका देखलेना अत्यंत असंभव है । एकसे अधिक मिले परमाणुओंको अणु कहते हैं और यौगिक पदार्थोंका अतिशय सूक्ष्म अंश भी अणु कहा जाता है क्योंकि उस एक अणुमें भी अनेक रूढ पदार्थोंके अंशोंका संयोग है।। .. मकडीके जालमें जो मूत होता है उसमें अणुवीक्षण यंत्रके द्वारा देखनेसे ६ हजार तारोंसे भी अधिक तारोंका संयोग मालूम होता है । कीटाणु नामके जो सूक्ष्म प्राणी (जीव) हैं वे अणुवीक्षण द्वारा देखनेमें आते हैं । वे सब जीव जल, वायु, वर्फ और अन्न वगेरह द्रव्योंमें रहते हैं बल्कि जलमें तो ऐसे कीटाणु (स ) हैं कि उन करोडों जीवोंको इकट्ठा करने पर भी वालू रेतके एक कणकी वरावर नहिं हो सकते और उन जीवोंके भिन्न २ माकार हैं, रक्त मांस भी हैं। वे रक्त मांस भी अनेक परमाणुओंका एक पिंड (स्कंध ) है । जब ऐसे सूक्ष्म जीव भी देखनेमें नहि आते तब परमाणु तो अति मूक्ष्म है सो नेत्रगोचर नहिं हो सकता। एक मिरचको तोड़कर जीभपर लगाते हैं तो चरपरा मालूम होता है, परंतु उस मिरचका कोई अंश क्षय हुआ नहि दीखता यानी मिरच ज्योंकी त्यों मालूम होती है। यदि मिरचका कोई अंश जिहाके नहिं लगा तो चरपरार्ट कहांसे आया ? इससे सिद्ध होता है कि जिवापर जो चरप
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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