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जैन- अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास
सार सूर्य का उदय या अस्त नही होता, चन्द्रमा घटता या वढता नही, नदियाँ वहती नही और हवा चलती नही ।
वौद्ध ग्रन्थो मे आचार्य पूरण- कश्यप के अक्रियावाद का वर्णन मिलता है । सभवन जैन सूत्रो मे मिलने वाला यह अक्रियावाद वही अक्रियावाद हो । उनका कहना था कि "किसी ने कुछ किया या करवाया, काटा या कटवाया, तकलीफ दी या दिलवाई, शोक किया या करवाया, कष्ट सहा या दिया, डरा या दूमरो को डराया, प्राणी की हत्या की, चोरी की, डकैती की, घर लूट लिया, वटमारी की, परस्त्री गमन किया, असत्य वचन कहा, फिर भी उसको पाप नही लगता । तीक्ष्ण धार के चक्र से भी अगर कोई इस संसार के सव प्राणियो को मार कर ढेर लगा दे तो भी उसे पाप न लगेगा | गंगा नदी के उत्तर किनारे पर जाकर भी कोई दान दे या दिलवाए, यज्ञ करे या करवाए, तो कुछ भी पुण्य नही होने का । दान, धर्म, सयम, सत्य भाषण – इन सवो से पुण्य प्राप्ति नही होती । " २
अक्रियावाद के चौरासी भेद है। उपर्युक्त जीवादि नव पदार्थो मे से पुण्य-पाप इन दो पदार्थों को छोड़कर बाकी सात पदार्थ, स्वत तथा परत एव काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव तथा यदृच्छा के भेद से (७ x २x६) ८४ हो जाते है । 3
स्थानाग सूत्र मे अक्रियावादी के सात भेद बताए गए है१ एका वार्ड (एकवादी), २ अणेगावाई (अनेकवादी ), ३ मियवाई (मितवादी ), ४ निम्मियवाई ( निर्मितवादी ), ५ समुच्छेयवाई (समुच्छेदवादी), ६ नियवाई (नित्यवादी), ७ न सन्त परलोकवाई (न शान्ति परलोकवादी ) ।
एकवादी - एक ही आत्मा प्रत्येक प्राणियो मे व्याप्त है । जैसे एक ही चन्द्रमा का प्रतिविम्व अनेक जलागयो मे अनेक प्रकार से दिखता है, उसी प्रकार यह एक आत्मा भी नाना रूप में प्रतिभासित होता है ।
सूत्र कृताग, ११२ ४-८
भारतीय संस्कृति और अहिंसा, २४ पृ० ४५-४६.
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३. सूत्र कृताग टीका, ११२ पृ० २०६
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