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द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष
चार प्रकार के अन्य वाद सूत्रकृताग में चार प्रकार के वादो का वर्णन मिलता है जो कि महावीर के समय में वर्तमान थे। १ किरियम् (क्रियावाद), २ अकिरियम् (अक्रियावाद), ३ अन्नाणम् (अनानवाद), ४ विणीयम् (विनयवाद)। क्रियावाद
क्रिया आत्मा की सूचक है, अत. जो वादी आत्मा की स्थिति को स्वीकार करते है वे क्रियावादी है। जो यह मानता है कि जीव नरक मे दुःख का अनुभव करते है, जो पाप और उससे विरक्ति को मानते है तथा दु ख और उसके सम्पूर्ण नाश का भी जिन्हे ज्ञान है वे क्रियावाद के व्याख्याता माने जाते है। क्रियावाद के १८० भेद है। जीव, अजीव, आसव, वध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप-ये नव पदार्थ है । ये नव ही पदार्थ, स्वत -परतः, नित्य-अनित्य तथा काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, तथा स्वभाव के भेद से (Ex२x २४५) के भेद से १८० हो जाते है। क्रियावाद की यह परिभाषा जैनो के लिए भी लागू होती है। केवल अतर इतना है कि जैन सम्यक्दर्शन, सम्यग्नान तथा सम्यक्चारित्र तीनो के एकत्व से मुक्ति मानते है, जव कि क्रियावादी केवल सम्यक्चारित्र (क्रिया) से ही मुक्ति मानते है । अक्रियावाद
अक्रियावादी आत्मा की स्थिति को स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार प्रत्येक वस्तु क्षणस्थायी है । जव प्रत्येक वस्तु एक क्षण के वाद नष्ट हो जाती है तो क्रिया कैसे हो सकती है ? यह सिद्धान्त बौद्धो के क्षणिकवाद सिद्धान्त के बहुत निकट है। इस मत के अनु
१ सूत्र कृताग, १ १२ २ "क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी के ८४, अज्ञानवादी के ६७ तथा
विनयवादी के ३२-इस प्रकार सब मिलकर ३६३ पाखडियो के व्यूह
है।"-समवायांग, १३७ । नदी सूत्र, ४६ पृ० १२२ ३ सूत्र कृताग (टीका), १ १२ पृ० २०८-अ