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जैन-अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास
अत मे न पछताना पडे---इसलिए आत्मा को भोगो से छुडाना चाहिए।' ____ महावीर ने अपने समय मे ज्ञानहीन साधुओ की बहुतायत देखकर मनुष्य का ध्यान इस बात पर आकृष्ट किया कि कोई भले ही नग्न अवस्था मे फिरे या मास के अत मे एक बार भोजन करे किन्तु वह यदि मायावी है तो उसको बार-बार गर्भवास प्राप्त होगा।' केवल स्नान से मुक्ति मानने वालो से महावीर ने कहा कि यदि स्नान करने मात्र से मोक्ष मिलता हो तो पानी में रहने वाले अनेक जीव भी मुक्त हो जावे। पानी यदि पाप-कर्मो को धो सकता, तो उससे पुण्य भी धुल जा सकते हैं ।
उन्होने मनुष्य का ध्यान आत्म-प्रशसा से हटाकर वास्तविक आत्मोन्नति की ओर आकृष्ट किया । "प्रसिद्ध कुल में उत्पन्न होकर जो भिक्षु वने है और महा तपस्वी है, यदि उनका तप कीर्ति लाभ की इच्छा से किया गया है तो वह शुद्ध नहीं है। जिसे दूसरे न जानते हो वही तप है, ऐसा समझ कर साधु को कभी भी आत्मप्रशसा मे लीन न होना चाहिए। जो सर्वस्व का त्याग करके,
खे-सूखे आहार पर रहने वाला होकर भी गर्व और स्तुति का इच्छुक होता है, उसका सन्यास ही उसकी आजीविका होती है। ज्ञान प्राप्त किये विना वह ससार मे वार-वार भटकता है।" सार्वजनिक सेवा
श्रमण भगवान् महावीर का ४३ से ७२ वर्ष तक का यह दीर्घजीवन सार्वजनिक सेवा मे व्यतीत हुआ। इस समय में उनके द्वारा किए गए मुख्य कार्यो का विवरण निम्न प्रकार है .
१ महावीर ने जाति का तनिक भी भेद रखे विना प्रत्येक व्यक्ति के लिए (शूद्रो के लिए भी) भिक्षु-पद और गुरु-पद का मार्ग
१ सूत्र कृताग, २ ३ ७ २ वही २ १६ ३ वही ७ १४ ४ वही ७ १६ ५ वही ८ २४. ६ वही १३ १२.